कैसी आजादी !

हर साल 15 अगस्त आता है और आजादी का एहसास भर करा कर चला जाता है। क्या हम आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक किसी भी क्षेत्र में आजाद हैं, कदापि नहीं!
फिर यूं आजाद भारत में रह रहें हैं अपने ही लोगों के बीच मकड़जाल में फंस कर बस सांसे भर रहे हैं। कहीं अत्याचार तो, कहीं भ्रष्टाचार, तो कहीं अन्याय ही अन्याय। यह कैसा भारत है जहां एक शाम रोटी के लिए कई जद्दो जहद करना पड़ता है और उस पर क्रूर समाज की अत्याचार भरी निगाहें हम पर टीकी होती हैं और उनके जाल में फंस कर बस तड़पने के सिवा कुछ नहीं मिलता। वहीं हमारे जनप्रतिनिधि एवं प्रशासक वर्ग बिना कठिन परिश्रम के एक शाम की नहीं सदियों के रोटी, चन्द मिनटों में जमा कर लेते हैं और डकार भी नहीं लेते। कभी हो-हल्ला अगर हो भी गया तो जांच के नाम पर थोड़ा और इकट्ठा कर लिया। थोड़ा इधर-उधर हुआ लेकिन फिर मौजा-ही-मौजा। ना उसकी सम्पत्ती कुर्क हुई ना उसे जेल हुआ, और ना ही फांसी। बस लुटा गया तो एक गरीब या वो जो इनके सिस्टम में फिट नहीं बैठता। हाय यह कैसी आजादी !
डॉ. एम. यू.दुआ
राष्ट्रीय अध्यक्ष, 'एहरा'